बचपन में एक पत्थर तबियत से ऊपर उछाला था कभी…! . . आज हालात देखकर लगता है . . कहीं वो “ऊपर-वाले” को तो नहीं लग गया…!!
Category: बचपन शायरी
जब आंख खुली
जब आंख खुली तो अम्मा की गोदी का एक सहारा था उसका नन्हा सा आंचल मुझको भूमण्डल से प्यारा था उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों सा खिलता था उसके स्तन की एक बूंद से मुझको जीवन मिलता था हाथों से बालों को नोंचा पैरों से खूब प्रहार किया फिर भी उस मां ने… Continue reading जब आंख खुली
दौलत तो साथ
बस दुआएँ बटोरनें आया हूँ, माँ ने कहा, . दौलत तो साथ जाती नहीं”..
गुजारा कर लेती है
चीखकर हर जिद पूरी करवाता है इकलौता बेटा!! मगर बिटिया गुजारा कर लेती है टूटी पायल जोड़कर!!!
लिपट जाता हूँ माँ
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है उछलते खेलते बचपन में बेटा ढूँढती होगी तभी तो देख कर पोते को दादी मुस्कुराती है तभी जा कर कहीं माँ-बाप को कुछ चैन पड़ता है कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुस्कुराती है चमन… Continue reading लिपट जाता हूँ माँ
बचपन बड़ा होकर
बचपन — बड़ा होकर पायलट बनूँगा, डॉक्टर बनूँगा या इंजीनियर बनूँगा…. जवानी — “अरे भाई वो चपरासी वाला फॉर्म निकला की नही अभी तक
हवाओ जैसी
रुके तो चाँद जैसी हैँ….. चले तो हवाओ जैसी हैँ….. वो माँ ही हैँ….. जो धुप मैँ भी छाँव जैसी हैँ….
रात हुई और सो गए
वो बचपने की नींद तो अब ख़्वाब हो गई क्या उम्र थी कि रात हुई और सो गए ।
यहाँ तो बेचने वाले
नशेमन ही के लुट जाने का ग़म होता तो क्या ग़म था, यहाँ तो बेचने वाले ने गुलशन बेच डाला है।
बच्चे झगड़ रहे थे
बच्चे झगड़ रहे थे मोहल्ले के जाने किस बात पर, सूकून इस बात का था न मंदिर का ज़िक्र था न मस्जिद का.