इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े हँसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े |
Category: Urdu Shayri
गए वो दिन कि शिकवे थे
गए वो दिन कि शिकवे थे जहाँ के… अब अपना ही गिला है और मैं हूँ..
लिख कर संजो लेते हो
लिख कर संजो लेते हो, हर कहानी को फ़ोन में, पर गुलाब छुपाने के लिए वो पन्ने कहाँ से लाओगे!
इश्क़ की दास्ताँ है
इश्क़ की दास्ताँ है प्यारे अपनी अपनी जुबान है प्यारे रख कदम फूंक फूंक कर नादाँ ज़र्रे ज़र्रे में जान है प्यारे।
आलमारी मैं बंद रखा जाता है
आलमारी मैं बंद रखा जाता है कभी पहना नहीं जाता हाल अपना भी अब बेवा के जेवर जैंसा हो गया है|
जब कोई अपना
जब कोई अपना मर जाता है ना साहिब…..! फिर कब्रिस्तानों से डर नही लगता…
नजरे छुपाकर क्या मिलेगा…
नजरे छुपाकर क्या मिलेगा… नजरे मिलाओ,शायद हम मिल जाये
किसे याद किया करता हैं
धुप में कौन किसे याद किया करता हैं पर तेरे शहर में बरसात तो होती होगी
काश एक ख़्वाहिश
काश एक ख़्वाहिश पूरी हो इबादत के बगैर, तुम आ कर गले लगा लो मुझे, मेरी इज़ाज़त के बगैर….!!
आज फिर कुछ लोगों को
आज फिर कुछ लोगों को बेगाना किया जायेगा, आज फिर से मेरे दुश्मनो में इज़ाफ़ा होगा