सारी रात गुज़र जाती है इन्ही हिसाबों में… उसे मोहब्बत थी…? नहीं थी…? है…? नहीं है…
Category: Urdu Shayri
अपनी नाराज़गी कि
अपनी नाराज़गी कि कोई वजह तो बताई होती, हम ज़माने को छोड़ देते एक तुझे मनाने के लिए…
इतनी मतलबी हो गई हैं
इतनी मतलबी हो गई हैं आँखें मेरी, कि तेरे दीदार के बिना दुनिया अच्छी नहीं लगती..!!!
हिचकियों से एक बात का
हिचकियों से एक बात का पता चलता है कि कोई हमें याद तो करता है, बात न करे तो क्या हुआ कोई आज भी हम पर कुछ लम्हें बरबाद तो करता है…
तुझसे हर कदम पर
ज़िन्दगी तुझसे हर कदम पर समझौता करूँ, शौक जीने का है मगर इतना भी नहीं।
जीने के आरजू में
जीने के आरजू में मरे जा रहे है लोग, मरने के आरजू में जिया जा रहा हु में.
कभी तो मेरी ख़ामोशी का
कभी तो मेरी ख़ामोशी का मतलब खुद समझ लो….! कब तक वजह पूछोगे अंजानो की
जिंदगी अब नहीं संवरेगी
जिंदगी अब नहीं संवरेगी शायद..तजुर्बेकार था.. उजाड़ने वाला…
पेड़ भूडा ही सही
पेड़ भूडा ही सही घर मे लगा रहने दो, फल ना सही छाँव तो देगा
उसे जाने को जल्दी थी
उसे जाने को जल्दी थी सो मैं आँखों ही आँखों में, जहां तक छोड़ सकता था वहाँ तक छोड़ आया हूँ…