कभी तो मेरी ख़ामोशी का मतलब खुद समझ लो….! कब तक वजह पूछोगे अंजानो की
Category: दर्द शायरी
जिंदगी अब नहीं संवरेगी
जिंदगी अब नहीं संवरेगी शायद..तजुर्बेकार था.. उजाड़ने वाला…
पेड़ भूडा ही सही
पेड़ भूडा ही सही घर मे लगा रहने दो, फल ना सही छाँव तो देगा
उसे जाने को जल्दी थी
उसे जाने को जल्दी थी सो मैं आँखों ही आँखों में, जहां तक छोड़ सकता था वहाँ तक छोड़ आया हूँ…
सन्नाटा छा गया
सन्नाटा छा गया बँटवारे के किस्से में, जब माँ ने पूँछा- मैं हूँ किसके हिस्से में
जहाँ आपको लगे कि
जहाँ आपको लगे कि आपकी जरूरत नही है.. वहां ख़ामोशी से खुद को अलग कर लेना चाहिए!!
यूँ तो ए-ज़िन्दगी
यूँ तो ए-ज़िन्दगी, तेरे सफर से शिकायते बहुत थी, मगर “दर्द” जब “दर्ज” कराने पहुँचे तो “कतारे” बहुत थी।
दिलों में रहता हूँ
दिलों में रहता हूँ धड़कने थमा देता हूँ मैं इश्क़ हूँ, वजूद की धज्जियां उड़ा देता हूँ
मैं तुझे चांद कह दूं
मैं तुझे चांद कह दूं ये मुमकिन तो है मगर लोग तुझे रात भर देखें ये गवारा नहीं मुझे|
मंजिल मिल ही जायेगी
मंजिल मिल ही जायेगी, भटकते हुए ही सही.. गुमराह तो वो हैं, जो घर से निकले ही नहीं।