कितना मुश्क़िल सवाल

कितना मुश्क़िल सवाल पूछ लिया… तुमने तो हाल चाल ही पूछ लिया…

इतना तो ज़िंदगी में

इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े हँसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े |

कभी चुप तो कभी गुम

कभी चुप तो कभी गुम सी हैं, ये बारिशें भी बिलकुल तुम सी हैं।

गए वो दिन कि शिकवे थे

गए वो दिन कि शिकवे थे जहाँ के… अब अपना ही गिला है और मैं हूँ..

लिख कर संजो लेते हो

लिख कर संजो लेते हो, हर कहानी को फ़ोन में, पर गुलाब छुपाने के लिए वो पन्ने कहाँ से लाओगे!

हमने सूरज की रोशनी में

हमने सूरज की रोशनी में कभी अदब नहीं खोया, कुछ लोग तो जुगनुओं की चमक में मगरूर हो गए…

बेशक बेघर हूँ

बेशक बेघर हूँ मैं इस जहाँ में, मगरआशियाँ तेरी यादों का आज भी मेरा दिल ही है….!!

हम ज़माने से

हम ज़माने से इंतक़ाम तो ले इक हँसी दरमियान है प्यारे

खुदा जाने यह किसका

खुदा जाने यह किसका जलवा है दुनियां ए बस्ती में हजारों चल बसे लेकिन, वही रौनक है महफिल की।

हाँ ठीक है

हाँ ठीक है मैं अपनी अना का मरीज़ हूँ आख़िर मेरे मिज़ाज में क्यूँ दख़्ल दे कोई

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