कितना मुश्क़िल सवाल पूछ लिया… तुमने तो हाल चाल ही पूछ लिया…
Tag: वक्त शायरी
गए वो दिन कि शिकवे थे
गए वो दिन कि शिकवे थे जहाँ के… अब अपना ही गिला है और मैं हूँ..
हम ज़माने से
हम ज़माने से इंतक़ाम तो ले इक हँसी दरमियान है प्यारे
खुदा जाने यह किसका
खुदा जाने यह किसका जलवा है दुनियां ए बस्ती में हजारों चल बसे लेकिन, वही रौनक है महफिल की।
हाँ ठीक है
हाँ ठीक है मैं अपनी अना का मरीज़ हूँ आख़िर मेरे मिज़ाज में क्यूँ दख़्ल दे कोई
जब कोई अपना
जब कोई अपना मर जाता है ना साहिब…..! फिर कब्रिस्तानों से डर नही लगता…
किसे याद किया करता हैं
धुप में कौन किसे याद किया करता हैं पर तेरे शहर में बरसात तो होती होगी
हमारा तजरबा हमको
हमारा तजरबा हमको सबक़ ये भी सिखाता है कि जो मक्खन लगाता है वो ही चूना लगाता है|
अपनी नाराज़गी कि
अपनी नाराज़गी कि कोई वजह तो बताई होती, हम ज़माने को छोड़ देते एक तुझे मनाने के लिए…
फिर कभी नहीं हो सकती
फिर कभी नहीं हो सकती मुहब्बत सुना तुमने वो शख्स भी एक था और मेरा दिल भी एक ।