सन्नाटा छा गया

सन्नाटा छा गया बँटवारे के किस्से में, जब माँ ने पूँछा- मैं हूँ किसके हिस्से में

जहाँ आपको लगे कि

जहाँ आपको लगे कि आपकी जरूरत नही है.. वहां ख़ामोशी से खुद को अलग कर लेना चाहिए!!

यूँ तो ए-ज़िन्दगी

यूँ तो ए-ज़िन्दगी, तेरे सफर से शिकायते बहुत थी, मगर “दर्द” जब “दर्ज” कराने पहुँचे तो “कतारे” बहुत थी।

दिलों में रहता हूँ

दिलों में रहता हूँ धड़कने थमा देता हूँ मैं इश्क़ हूँ, वजूद की धज्जियां उड़ा देता हूँ

मैं तुझे चांद कह दूं

मैं तुझे चांद कह दूं ये मुमकिन तो है मगर लोग तुझे रात भर देखें ये गवारा नहीं मुझे|

मैंने कब कहा

मैंने कब कहा कीमत समझो तुम मेरी.. हमें बिकना ही होता तो यूँ तन्हा ना होते !!

तुम्हे गुरुर ना हो जाये

तुम्हे गुरुर ना हो जाये हमे बर्बाद करने का इसीलिए सोचा हमने महफ़िल में मुस्कुराने का..

बीती जो खुद पर

बीती जो खुद पर तो कुछ न आया समझ मशवरे यूं तो औरों को दिया करते थे..

मंजिल मिल ही जायेगी

मंजिल मिल ही जायेगी, भटकते हुए ही सही.. गुमराह तो वो हैं, जो घर से निकले ही नहीं।

सूखे पत्ते भीगने लगे हैं

सूखे पत्ते भीगने लगे हैं अरमानों की तरह मौसम फिर बदल गया , इंसानों की तरह.!!

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