काश पलट के पहुंच जाऊ फिर से वो बचपन की वादियों में, ना कोई जरुरत थी ना कोई जरुरी था….
Category: बचपन शायरी
झूठ बोलते थे कितना,फिर भी सच्चे थे
झूठ बोलते थे कितना,फिर भी सच्चे थे हम.. ये उन दिनों की बात है,जब बच्चे थे हम…!!
किराए की साइकिल
एक दो रूपये देकर किराए की साइकिल चलाने का सुख, तुम क्या जानो पल्सर वाले बाबू।
न सफारी में नज़र आयी और न ही फरारी में
न सफारी में नज़र आयी और न ही फरारी मेँ…… जो खुशी बचपन मेँ साइकिल की सवारी में नज़र आयी।
बचपन भी कमाल का था।
बचपन भी कमाल का था। खेलते खेलते चाहें छत पर सोयें या ज़मीन पर, आँख बिस्तर पर ही खुलती थी ..!!