इंसान बनने की फुर्सत

इंसान बनने की फुर्सत ही नहीं मिलती, आदमी मसरूफ है इतना, ख़ुदा बनने में…

यही हुनर है

यही हुनर है उस स्याही का जो हर किसी की कलम में होती नहीं..!

जाने क्यूँ आजकल

जाने क्यूँ आजकल, तुम्हारी कमी अखरती है बहुत यादों के बन्द कमरे में, ज़िन्दगी सिसकती है बहुत पनपने नहीं देता कभी, बेदर्द सी उस ख़्वाहिश को महसूस तुम्हें जो करने की, कोशिश करती है बहुत..

पता है जिसको

पता है जिसको मुस्तकबिल हमारा  वो अपने आज से अनजान क्यूँ है|

मुझसे मिलने को

मुझसे मिलने को करता था बहाने कितने, अब मेरे बिना गुजारेगा वो जमाने कितने !!

मुफ्त में नहीं आता

मुफ्त में नहीं आता, यह शायरी का हुनर…. इसके बदले ज़िन्दगी हमसे, हमारी खुशियों का सौदा करती है…!!

पता नही होश मे हूँ..

पता नही होश मे हूँ.. या बेहोश हूँ मैं…. पर बहूत सोच समझकर खामोश हूँ मैं..!!

तकिये के लिहाफ में

तकिये के लिहाफ में छुपाकर रखी हैं तेरी यादें, जब भी तेरी याद आती है मुँह छुपा लेता हूँ

किसकी खातिर अब

किसकी खातिर अब तु धड़कता है ऐ दिल.. अब तो कर आराम, कहानी खत्म हुई !

तुम्हारी नाराजगी बहुत

तुम्हारी नाराजगी बहुत वाजिब है… मै भी खुद से खुश नहीं हूँ !

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