​घर की इस बार

घर की इस बार मुकम्मल मै तलाशी लूँगा ग़म छुपा कर मेरे माँ बाप कहाँ रखते है..

उम्मीदों की तरह

मिट चले मेरी उम्मीदों की तरह हर्फ़ मगर, आज तक तेरे खतों से तेरी खुश्बु ना गई।

मुहब्बत अगर चेहरा

मुहब्बत अगर चेहरा देख कर होती तो यकीन मानो तुम से कभी नही होती

आग भी क्या

आग भी क्या अजीब चीज़ है… ख़ामोशी से भी लग जाती है…!!!

दिल में समा गई हैं

दिल में समा गई हैं क़यामत की शोख़ियाँ… दो-चार दिन रहा था किसी की निगाह में….

फितरत किसी की

फितरत किसी की यूँ ना आजमाया करिए साहब… के हर शख्स अपनी हद में लाजवाब होता है…

छोड़ आया हूँ

छोड़ आया हूँ गर्म चाय मेज़ पर। यह इशारा है तुमसे जुदाई का।

गीली आँखों का

गीली आँखों का दर्द कुछ ख़फ़ा सा है… ये जो सीने में धड़कता है बेवफ़ा सा है…

हर अल्फाज दिल का

हर अल्फाज दिल का दर्द है मेरा पढ़ लिया करो, कोन जाने कोन सी शायरी आखरी हो जाये|

आँधियाँ हसरत से

आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रह गईं, बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर झुकने का था…

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