बुरे दिनों में कर नहीं कभी किसी से आस परछाई भी साथ दे, जब तक रहे प्रकाश
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मोहब्बत केअफसानें
अल्फाज़ों में क्या बयाँ करे अपनी मोहब्बत के अफसानें हमारे दिल में तो वो ही वो है, उनके दिल की खुदा जाने..”
कितनी ज़ालिम है
ये बारिश भी कितनी ज़ालिम हे जो यूँ ही आकर चली जाती है… .. याद दिलाती है मेरे मेहबूब की.. और भिगोकर मुझे चली जाती है……
मैंने भी बदल दिये
मैंने भी बदल दिये ज़िन्दगी के उसूल, अब जो याद करेगा…,सिर्फ वो ही याद रहेगा…!!
इश्क कर लीजिये
इश्क कर लीजिये बेइंतेहा किताबों से… एक ये ही अपनी बात पलटा नहीं करतीं…!!!
मैं अकेला हूं
कहने को ही मैं अकेला हूं.. पर हम चार है.. एक मैं.. मेरी परछाई.. मेरी तन्हाई.. और तेरा एहसास..”
तैरना तो आता था
तैरना तो आता था हमे मोहब्बत के समंदर मे लेकिन… जब उसने हाथ ही नही पकड़ा तो डूब जाना अच्छा लगा…
फिर से सूरज
फिर से सूरज लहूलुहान समंदर में गिर पड़ा, दिन का गुरूर टूट गया और फिर से शाम हो गई .
जब मैं डूबा
जब मैं डूबा तो समंदर को भी हैरत हुई …… कितना तन्हा शख़्स है, किसी को पुकारता भी नही…..
दिल्लगी नहीं हमारी
दिल्लगी नहीं हमारी शायरी जो किसी हुस्न पर बर्बाद करें,यह तो एक शमा है जो आपके नूर का कयाम है. दिल ❤से?