मंज़ूर नहीं किसी को ख़ाक में मिलना, आंसू भी लरज़ता हुआ आँख से गिरता है…..
Tag: Urdu Shayri
ये चांद की
ये चांद की आवारगी भी यूंही नहीं है, कोई है जो इसे दिनभर जला कर गया है..
चिँगारियोँ को हवा दे
चिँगारियोँ को हवा दे कर हम दामन नहीँ जलाते, बुलंद इरादे हमारे पूरे शहर मेँ आग लगाते हैँ..
सूरज रोज़ अब भी
सूरज रोज़ अब भी बेफ़िज़ूल ही निकलता है …. तुम गए हो जब से , उजाला नहीं हुआ …
तलब नहीं कोई
तलब नहीं कोई हमारे लिए तड़पे , नफरत भी हो तो कहे आगे बढ़के.!!
जिसे शिद्दत से
जिसे शिद्दत से चाहो वो मुद्दत से मिलता है, बस मुद्दतों से ही नहीं मिला कोई शिद्दत से चाहने वाला!
लिखा जो ख़त हमने
लिखा जो ख़त हमने वफ़ा के पत्ते पर, डाकिया भी मर गया शहर ढूंढते ढूंढते..
उस तीर से
उस तीर से क्या शिकवा, जो सीने में चुभ गया, लोग इधर हंसते हंसते, नज़रों से वार करते हैं।
बताओ तो कैसे
बताओ तो कैसे निकलता है जनाज़ा उनका, वो लोग जो अन्दर से मर जाते है…
दो लब्ज़ क्या लिखे
दो लब्ज़ क्या लिखे तेरी याद मे.. लोग कहने लगे तु आशिक बहुत पुराना है|