वक़्त के नाखून

वक़्त के नाखून, बहुत गहरा नोचते हैं दिल को तब जाके कुछ ज़ख्म, तजुर्बा बनके नज़र आते हैं…

मोहब्बत नहीँ करतेँ..

ना शौक दीदार का… ना फिक्र जुदाई की, बड़े खुश नसीब हैँ वो लोग जो…मोहब्बत नहीँ करतेँ…!!

इज़हार कर गयी…!!

एक मैं था जो थक गया, लफ्ज़ ढूंढ-ढूंढ कर,, एक वो थी जो खरीदे हुए गुलाब देकर इज़हार कर गयी…!!

ताल्लुक भी खत्म

काश..! निगाहे फेर लेने से… ताल्लुक भी खत्म हो जाते..!!

मेरा भी वक्त आएगा

छत , इतवार , परिंदे , पेड , किताब , कलम , शाम … मैंने कहा था ना मेरा भी वक्त आएगा .!!

खुल सकती हैं

खुल सकती हैं रुमाल की गांठें बस ज़रा से जतन से मगर, लोग कैंचियां चला कर, सारा फ़साना बदल देते हैं.. !!!

अपना क्या है

जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ अपना क्या है सारे शहर का इक जैसा नुक़सान हुआ

गुलाबों को नहीं

गुलाबों को नहीं आया अभी तक इस तरह खिलना.., सुबह को जिस तरह वो नींद से बे’दार होती है….

जिंदगी पर बस

जिंदगी पर बस इतना ही लिख पाया हूँ मैं…. बहुत मजबूत रिश्ते थे मेरे…. पर बहुत कमजोर लोगों से…..

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