न रहनुमाओं की

न रहनुमाओं की मज्लिस में ले चलो मुझको मैं बे-अदब हूँ हँसी आ गई तो क्या होगा ?

हमारे बिन अधूरे

हमारे बिन अधूरे तुम रहोगे कभी था कोई मेरा, तुम खुद कहोगे न होगें हम तो ये आलम भी न होगा मिलेगें बहुत से पर कोई हम-सा न होगा.

तोहफा लाने निकला था

आज तोहफा लाने निकला था शहर में तेरे लिए, कम्बखत खुद से सस्ता कुछ ना मिला।।

मैं अकेला हूं

कहने को ही मैं अकेला हूं.. पर हम चार है.. एक मैं.. मेरी परछाई.. मेरी तन्हाई.. और तेरा एहसास..”

तैरना तो आता था

तैरना तो आता था हमे मोहब्बत के समंदर मे लेकिन… जब उसने हाथ ही नही पकड़ा तो डूब जाना अच्छा लगा…

फिर से सूरज

फिर से सूरज लहूलुहान समंदर में गिर पड़ा, दिन का गुरूर टूट गया और फिर से शाम हो गई .

जब मैं डूबा

जब मैं डूबा तो समंदर को भी हैरत हुई …… कितना तन्हा शख़्स है, किसी को पुकारता भी नही…..

दिल्लगी नहीं हमारी

दिल्लगी नहीं हमारी शायरी जो किसी हुस्न पर बर्बाद करें,यह तो एक शमा है जो आपके नूर का कयाम है. दिल ❤से?

हल्का गुरूर है

वो जो उनमें हल्का हल्का गुरूर है.. सब मेरी तारीफ का कुसूर है..।।

नजर की बात है

नजर-नजर की बात है कि किसे क्या तलाश है, तू हंसने को बेताब है, मुझे तेरी मुस्कुराहटों की ही प्यास हैं…

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