आ के अब

आ के अब यूँ सहा नहीं जाता दूर तुझ से रहा नहीं जाता दरगुज़र िकतना भी करलूँ मुझसे अब चुप रहा नहीं जाता नेक बख़ती की बात सुनता हूँ तो भी अच्छा हुआ नहीं जाता दिल में ऐसी उमंग उठती है चाहूँ भी बारहा, नहीं जाता क्यों पसो पेश में पड़ा है तू यार सोचा… Continue reading आ के अब

मुझे

मुझे कहना है अभी वह शब्द जिसे कहकर निःशब्द को जाऊँ मुझे देना है अभी वह सब जिसे देकर निःशेष हो जाऊँ मुझे रहना है अभी इस तरह कि मैं रहूँ लेकिन ‘मैं’ रह न जाऊँ I

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