कैसे ज़िंदा रहेगी

कैसे ज़िंदा रहेगी तहज़ीब ज़रा सोचिये….. पाठशाला से ज़्यादा तो मधुशाला है शहर में..

उस को भी

उस को भी हम से मोहब्बत हो ज़रूरी तो नहीं… इश्क़ ही इश्क़ की क़ीमत हो ज़रूरी तो नहीं…..

हारने के बाद

हारने के बाद इंसान नहीं टूटता….. हारने के बाद लोगों का रवय्या उसे टूटने पर मज़बुर करता है…..

नींद से क्या शिकवा

नींद से क्या शिकवा जो आती नहीं, कसूर तो उस चेहरे का है जो सोने नहीं देता !!

कभी यूँ भी

कभी यूँ भी हुआ है हंसते-हंसते तोड़ दी हमने… हमें मालूम नहीं था जुड़ती नहीं टूटी हुई चीज़ें..!!

अब कहां दुआओं में

अब कहां दुआओं में वो बरकतें,…वो नसीहतें …वो हिदायतें, अब तो बस जरूरतों का जुलुस हैं …मतलबों के सलाम हैं

लोग रूप देखते हैं

लोग रूप देखते हैं, हम दिल देखते हैं; लोग सपना देखते हैं, हम हकीकत देखते हैं; बस फर्क इतना है कि लोग दुनिया में दोस्त देखते हैं; हम दोस्तों में दुनिया देखते हैं।

दिल के टुकड़े टुकड़े करके

दिल के टुकड़े टुकड़े करके, मुस्कुरा के चल दिये॥

सर झुका के बोलें

पूछा हाल शहर का तो सर झुका के बोलें,,,, लोग तो जिंदा हैं जमीरों का पता नहीं.!!

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