जब आंख खुली तो अम्मा की गोदी का एक सहारा था उसका नन्हा सा आंचल मुझको भूमण्डल से प्यारा था उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों सा खिलता था उसके स्तन की एक बूंद से मुझको जीवन मिलता था हाथों से बालों को नोंचा पैरों से खूब प्रहार किया फिर भी उस मां ने… Continue reading जब आंख खुली तो
Tag: पारिवारिक शायरी
हताशा मे डूबी
हताशा मे डूबी माँ के आंसू जब औलाद पोंछती है..!! हर कर्ज अदा हो जाता है..ममता धन्य हो जाती है..!!
मैं उसकी गोंद में
मैं उसकी गोंद में खीला बचै की तरह मुजे फ़िरीगियो बोली सीखा पर उर्दू ऐ कलाम ना सीखा
हालांकि मेरी माँ
हालांकि मेरी माँ ने कभी तंत्र विद्या नहीं सीखी है पर जिस लड़की पर मै फ़िदा होता हूँ मेरी माँ एक नजर में बता देती है कि ये चुड़ैल है..
एक नफरत ही हैं
एक नफरत ही हैं जिसे दुनिया चंद लम्हों में जान लेती हैं.. वरना चाहत का यकीन दिलाने में तो जिन्दगी बीत जाती हैं.
प्रेम से देती है
प्रेम से देती है, वह है “बहन” झगङकर देता है, वह है “भाई” पुछकर देता है, वह है “पिताजी” और बिना माँगे सबकुछ दे देती है वह है…”माँ’”
गीत संगीत बगैर
सुना है, गीत संगीत बगैर सीखे नही आते..! न जाने माँ फिर भी लोरी इतने सुर मे कैसे गाती है….
दुख जमा कर सकते है।
“माँ” एक ऐसी ‘बैंक’ है जहाँ आप हर भावना और दुख जमा कर सकते है। और “पापा” एक ऐसा ‘क्रेडिट कार्ड’ है जिनके पास बैलेंस न होते हुए भी हमारे सपने पूरे करने की कोशिश करते है॥
गुजारा कर लेती है
चीखकर हर जिद पूरी करवाता है इकलौता बेटा!! मगर बिटिया गुजारा कर लेती है टूटी पायल जोड़कर!!!
कमज़ोर बुढ़ापा है
माँ बाप की मजबूरी ऐ काश कोई समझे, कमज़ोर बुढ़ापा है मुँहज़ोर जवानी है…!!