दुनियावी तजुर्बा है हक़ीकत में है होता ; जो माँ -बाप का न होता किसी का नहीं होता …
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इतने न कर
इतने न कर जुल्म माँ बाप पर बन्दे ; वे सोचने लगे कि बेऔलाद ही होता .
पढना चार किताब…!!
माँ बाप को ही गर दे दिया,उसने उलट जवाब तो फिर उसका व्यर्थ है,पढना चार किताब…!!
माँ के पैरो से
न अपनों से खुलता है, न ही गैरों से खुलता है. ये जन्नत का दरवाज़ा है, माँ के पैरो से खुलता है.!!
जिस का अंत नहीं
ऊपर जिस का अंत नहीं उसे आसमान कहते है, जहान में जिस का अंत नहीं उसे माँ कहते है
माँ के प्यार में
दौलत छोड़ी दुनिया छोड़ी सारा खज़ाना छोड़ दिया; माँ के प्यार में दीवानों ने राज घराना छोड़ दिया; . दरवाज़े पे जब लिखा हमने नाम अपनी माँ का; मुसीबत ने दरवाज़े पे आना छोड़ दिया।
उठाया गोद में
बुलंदियों का बड़े से बड़ा निशान छुआ, उठाया गोद में माँ ने तब आसमान छुआ
लिपट जाता हूँ माँ
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है उछलते खेलते बचपन में बेटा ढूँढती होगी तभी तो देख कर पोते को दादी मुस्कुराती है तभी जा कर कहीं माँ-बाप को कुछ चैन पड़ता है कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुस्कुराती है चमन… Continue reading लिपट जाता हूँ माँ
बददुआ नहीं होती
उसके होंठों पे कभी बददुआ नहीं होती , बस इक माँ है जो मुझसे कभी खफा नहीं होती.
हवाओ जैसी
रुके तो चाँद जैसी हैँ….. चले तो हवाओ जैसी हैँ….. वो माँ ही हैँ….. जो धुप मैँ भी छाँव जैसी हैँ….