दिल में समा गई हैं क़यामत की शोख़ियाँ… दो-चार दिन रहा था किसी की निगाह में….
Tag: व्यंग्य
फितरत किसी की
फितरत किसी की यूँ ना आजमाया करिए साहब… के हर शख्स अपनी हद में लाजवाब होता है…
हम पर भरी बहार का होता
हम पर भरी बहार का होता नहीं असर उनसे बिछड़ गए है तो जज़्बात मर गए उनसे किसी तरह की भी उल्फत न हो सकी जो लोग एक बार नज़र से उतर गए
बेगुनाह होकर भी
बेगुनाह होकर भी गुनाह कबूल कर लेता हूँ… इल्जाम उन्होने लगाया है गलत कैसे कहूँ…!!
दुआ जो लिखते हैं
दुआ जो लिखते हैं उसको दग़ा समझता है वफ़ा के लफ्ज़ को भी वो जफ़ा समझता है बिखर तो जाऊं गा मैं टूट कर,झुकूँ गा नहीं ये बात अच्छी तरह बेवफा समझता है|
कभी कभी हम
कभी कभी हम जिसके हक़दार होते है खुदा उन्हें भी किसी और के नसीब मे लिख देता है |
काली रातों को
काली रातों को भी रंगीन कहा है मैंने तेरी हर बात पे आमीन कहा है मैंने तेरी दस्तार पे तन्कीद की हिम्मत तो नहीं अपनी पापोश को कालीन कहा है मैंने मस्लेहत कहिये इसे या के सियासत कहिये चील-कौओं को भी शाहीन कहा है मैंने ज़ायके बारहा आँखों में मज़ा देते हैं बाज़ चेहरों को… Continue reading काली रातों को
मेरी उदासी की भी वजह
एक पागल थी जो मेरी उदासी की भी वजह पूछा करती थी, पर ना जाने क्यूँ उसे अब मेरे रोने से भी फर्क नहीं पड़ता !!
इकतरफ़ा इस्क का
इकतरफ़ा इस्क का अपना ही मज़ा हे अपना हीजुर्म हे और अपनी हीसज़ा हे..!!
मयख़ाने की इज्जत
मयख़ाने की इज्जत का सवाल था हुज़ूर रात कल सामने से गुज़रे,तो हम भी थोड़ा लड़खड़ा के चल दिए..