ये भी तो सज़ा है

ये भी तो सज़ा है कि गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ क्यूँ लोग मोहब्बत की सज़ा ढूँढ रहे हैं|

ख़्यालात का रंग

ये शहर शहरे-मुहब्बत की अलामत था कभी इसपे चढ़ने लगा किस-किस के ख़्यालात का रंग|

हाथ मिलते ही

हाथ मिलते ही उतर आया मेरे हाथों में कितना कच्चा है दोस्त तेरे हाथ का रंग |

तेरा भी अहसान

ऐ ज़िंदगी.. तेरा भी अहसान..क्यों रखा जाए, तू भी ले जा..इस खाक से..हिस्सा अपना…..॥

छोड़ जाने का गम नहीं

यूँ तो मुझे किसी के भी छोड़ जाने का गम नहीं बस, कोई ऐसा था जिससे ये उम्मीद नहीं थी..

फ़न तलाशे है

फ़न तलाशे है दहकते हुए जज़्बात का रंग देख फीका न पड़े आज मुलाक़ात का रंग |

मैं जब भी

मैं जब भी अपनी पुरानी स्कूल के पास से गुजरता हूँ सोचता हूँ मुझे बनाने में खुद टूट सी गयी है…. और जब भी में मेरे बेटे की प्रायवेट स्कूल के पास से गुजरता हूँ मुझे हमेशा लगता है मुझे तोड़ कर खुद बन गयी |

ऐसा तराशा है

तकलीफों ने ऐसा तराशा है मुझको… हर गम के बाद ज्यादा चमकता हूँ..

सर झुका के बोलें

पूछा हाल शहर का तो सर झुका के बोलें,,,, लोग तो जिंदा हैं जमीरों का पता नहीं.!!

मै फिर से

मै फिर से कर लुँगा मोहब्बत तुमसे…… एक बात तो बताओ इस बार वफा कितने दिन तक करोगी?

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