समन्दर के सफ़र में

समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको हवाएँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए!!!

तो क्या करता

ना शाखों ने पनाह दी ना हवाओं ने संभाला वो पत्ता आवारा न बनता तो क्या करता

ख़ुशी मुझ को

उसकी जीत से होती है ख़ुशी मुझ को, यही जवाब मेरे पास है अपनी हार का !

लिपट जाता हूँ माँ

लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है उछलते खेलते बचपन में बेटा ढूँढती होगी तभी तो देख कर पोते को दादी मुस्कुराती है तभी जा कर कहीं माँ-बाप को कुछ चैन पड़ता है कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुस्कुराती है चमन… Continue reading लिपट जाता हूँ माँ

देखेंगे अब जिंदगी

देखेंगे अब जिंदगी चित होगी या पट……. हम किस्मत का सिक्का उछाल बैठे हैं….

यादों की हवा

सारा दिन गुजर जाता है, खुद को समेटने में, फिर रात को उसकी यादों की हवा चलती है, और हम फिर बिखर जाते है!

याद से जाते नहीं

याद से जाते नहीं, सपने सुहाने और तुम, लौटकर आते नहीं, गुज़रे ज़माने और तुम, सिर्फ दो चीज़ें कि जिनको खोजती है ज़िंदगी, गीत गाने, गुनगुनाने के बहाने और तुम..

नजर आये कैसे

अपने चहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे तेरी मर्जी के मुताबिक़ नजर आये कैसे

किरदार की मोहताज नहीं

तेरे वादे तेरे प्यार की मोहताज नहीं ये कहानी किसी किरदार की मोहताज नहीं

ख़ुशी के चार झोंके

अरे ओ आसमां वाले बता इसमें बुरा क्या है ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुजर जाएँ

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