ये फैसला तो शायद

ये फैसला तो शायद वक़्त भी न कर सके सच कौन बोलता है, अदाकार कौन है।

बदलने को हम भी

बदलने को हम भी बदल जाते… फिर अपने आप को क्या मुंह दिखाते |

ख़ामोश सा शहर

ख़ामोश सा शहर और गुफ़्तगू की आरज़ू, हम किससे करें बात कोई बोलता ही नहीं…

जुड़ना सरल है

जुड़ना सरल है… पर जुड़े रहना कठिन….

अनजाने शहर में

अनजाने शहर में अपने मिलते है कहाँ डाली से गिरकर फूल फिर खिलते है कहाँ . . . आसमान को छूने को रोज जो निकला करे पिँजरे में कैद पंछी फिर उड़ते है कहाँ . . . दर्द मिलता है अक्सर अपनो से बिछड़कर टूट कर आईने भला फिर जुड़ते है कहाँ . . .… Continue reading अनजाने शहर में

लफ्ज़ उसकी यादो का

लफ्ज़ लफ्ज़ उसकी यादो का मेरे ज़हन में दर्ज है उसका इश्क़ ही इलाज है उसका इश्क़ ही मेरा मर्ज़ है|

तुम कब भूल जाओ

क्या पता तुम कब भूल जाओ ये मोहब्बत… जिसे हम ज़िन्दगी और तुम एक लफ्ज़ कहते हो…

जैसा याद और हिचकी

जैसा याद और हिचकी मे है वैसा ही कुछ ताल्लुक है तमाम कोशिशें नाकाम रहीं इस रिश्ते पर लफ्ज का रंग ना चढ़ा|

लिख लिख कर

लिख लिख कर छोड़ देते हैं शायरियां जिसके लिए बस, उन्ही को फ़ुरसत नहीं पढ़ने की !!

किसी और को चाहना

उसके सिवा किसी और को चाहना मेरे बस में नहीं हे , ये दिल उसका हे , अपना होता तो बात और होती ।

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