ख़ामोश सा शहर

ख़ामोश सा शहर और गुफ़्तगू की आरज़ू, हम किससे करें बात कोई बोलता ही नहीं…

जुड़ना सरल है

जुड़ना सरल है… पर जुड़े रहना कठिन….

मैं जब भी

मैं जब भी अपनी पुरानी स्कूल के पास से गुजरता हूँ सोचता हूँ मुझे बनाने में खुद टूट सी गयी है…. और जब भी में मेरे बेटे की प्रायवेट स्कूल के पास से गुजरता हूँ मुझे हमेशा लगता है मुझे तोड़ कर खुद बन गयी |

मै फिर से

मै फिर से कर लुँगा मोहब्बत तुमसे…… एक बात तो बताओ इस बार वफा कितने दिन तक करोगी?

लिहाफ़ ओढ़ के

चलो यादों का लिहाफ़ ओढ़ के सो जाए … शायद कोई खूबसूरत ख्वाब अब भी जिंदा हो …

जो देखने में

जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता था उसी के बारे में सोचा तो फासला बहुत निकला|

अगर कुसूर न करता

यह तो नहीं कहता कि इन्साफ ही करो.. झूठी भी तसल्ली हो तो जीता ही रहूँगा..!

भुख लोरी गा गा कर

भुख लोरी गा गा कर, . जमीर को सुलाये रखती हैं…

सिलसिला खत्म क्यों करना

सिलसिला खत्म क्यों करना जारी रहने दो, इश्क़ में बाक़ी थोड़ी बहुत उधारी रहने दो…

वफा की बूंद में

वफा की बूंद में एक हरारत इश्क की थी….. मुफलिसी के दिन थे…. हाँ, मुहब्बत बेच दी अपनी….

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