अपना क्या है

जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ अपना क्या है सारे शहर का इक जैसा नुक़सान हुआ

गुलाबों को नहीं

गुलाबों को नहीं आया अभी तक इस तरह खिलना.., सुबह को जिस तरह वो नींद से बे’दार होती है….

जिंदगी पर बस

जिंदगी पर बस इतना ही लिख पाया हूँ मैं…. बहुत मजबूत रिश्ते थे मेरे…. पर बहुत कमजोर लोगों से…..

मेरा है मुझमें

अलग दुनिया से हटकर भी कोई दुनिया है मुझमें, फ़क़त रहमत है उसकी और क्या मेरा है मुझमें. मैं अपनी मौज में बहता रहा हूँ सूख कर भी, ख़ुदा ही जानता है कौनसा दरिया है मुझमें. इमारत तो बड़ी है पर कहाँ इसमें रहूँ मैं, न हो जिसमें घुटन वो कौनसा कमरा है मुझमें. दिलासों… Continue reading मेरा है मुझमें

थोडा नादान हूँ

थोडा नादान हूँ, कभी कभी नादानी कर जाता हूँ, किसी का दिल दुखाना मेरी फितरत नही है…. …

अदा-ए-हुस्न

अदा-ए-हुस्न की मासूमियत को कम कर दे.. गुनहगार नज़र को हिजाब आता हे..!”

हमी से सीखी है

हमी से सीखी है वफ़ा-ऐ-मोहब्बत उसने, जिससे भी करेगा… कमाल करेगा ।

कौन कहता हे

कौन कहता हे भगवान आते नहीं तुम मीरा के जेसे बुलाते नहीं

ना मिला सुकून

ना मिला सुकून तो खतम ज़िन्दगी कर ली, नदी ने जाकर समंदर में खुदखुशी कर ली…!!!

सीख जाओ वक्त

सीख जाओ वक्त पर किसी की चाहत की कदर करना… कहीं कोई थक ना जाये तुम्हें एहसास दिलाते दिलाते..!!

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