तेरे ही ख्याल पर

तेरे ही ख्याल पर खत्म हो गया ये साल.. तेरी ही ख्वाहिश से शुरू, हुआ नया साल….

हादसोँ के गवाह हम भी हैँ

हादसोँ के गवाह हम भी हैँ, अपने दिल से तबाह हम भी हैँ, जुर्म के बिना सजा ए मौत मिली, ऐसे ही एक बेगुनाह हम भी हैँ..

कभी तो अपने लहजे से

कभी तो अपने लहजे से ये साबित कर दो…. के मुहोब्बत तुम भी हम से लाजबाब करती हो….

गाँव से निकला था

गाँव से निकला था तो माँ ने पर्स में मुस्कानें रखी थी, इस शहर ने जेब काट ली

हम वहाँ हैं

हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी कुछ हमारी ख़बर नहीं आती

सूरज रोज़ अब भी

सूरज रोज़ अब भी बेफ़िज़ूल ही निकलता है । तुम गये जब से उजाला नहीं हुआ….

याद रखते हैं

याद रखते हैं हम आज भी उन्हें पहले की तरह…कौन कहता है फासले मोहब्बत की याद मिटा देते हैं।

कौन शर्मा रहा है

कौन शर्मा रहा है यूं फुर्सत में हमें याद कर कर के, हिचकियाँ आना चाह रही हैं पर हिचकिचा रही हैं।

उसका चेहरा जो

उसका चेहरा जो मेरी आँखों में आबाद हो गया मैने उसे इतना पढ़ा कि मुझे याद हो गया .

लिखना है मुझे

लिखना है मुझे भी,कुछ गहरा सा……जिसे कोई भी पढे, समझ बस तुम सको .

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