रज़ामन्दी से हुआ

इश्क़ ” का बँटवारा , रज़ामन्दी से हुआ … चमक उन्होंने बँटोरी , तड़प हम ले आये !

तगाफुल का हम गिला

करने गये थे उनसे तगाफुल का हम गिला.. की एक ही निगाह कि हम खाक हो गये..!

Aaj phir baithe hain

Aaj phir baithe hain ek hichki ke intezar mein pata to chale wo kab hamein yaad karte hain

ज़िंदगी हमारी यूँ

ज़िंदगी हमारी यूँ सितम हो गयी; ख़ुशी ना जाने कहाँ दफ़न हो गयी; बहुत लिखी खुदा ने लोगों की मोहब्बत; जब आयी हमारी बारी तो स्याही ही ख़त्म हो गयी

आईना देख के

आईना देख के तसल्ली हुई कोई तो है इस घर मे जो जानता है हमे किसी को न पाने से ज़िंदगी खत्म नहीं हो जाती, पर किसी को पा के खो देने के बाद कुछ बाकी नहीं बचता

बुरे तो न थे

इतने बुरे तो न थे , जितने इलज़ाम लगाये लोगो ने,कुछ मुक्क़दर बुरे थे , कुछ आग लगाई लोगों ने !

यही सोचकर कोई

यही सोचकर कोई सफाई नहीं दी हमने. कि इल्जाम झूठे भले हैं पर लगाये तो तुमने हैं !!

अभी साथ था

अभी साथ था, अब खिलाफ है… वक्त का भी आदमी जैसा हाल है…!

अंदाज़ भी कमाल था

आहिस्ता बोलने का उसका अंदाज़ भी कमाल थाकानों ने कुछ सुना नहीं, पर दिल सब समझ गया

सिर्फ इशारों में

सिर्फ इशारों में होती मोहोब्बत अगर ..इन अल्फाजों को खूबसूरती कौन देता बस पत्थर बन के रह जाता ताजमहल ….अगर इश्क इसे अपनी पहचान ना देता

Exit mobile version