ज़िंदगी हमारी यूँ

ज़िंदगी हमारी यूँ सितम हो गयी;
ख़ुशी ना जाने कहाँ दफ़न हो गयी;
बहुत लिखी खुदा ने लोगों की मोहब्बत;
जब आयी हमारी बारी तो

स्याही ही ख़त्म हो गयी

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version