मुझे मालूम है..

मुझे मालूम है.. कि ऐसा कभी.. मुमकिन ही नही ! फिर भी हसरत रहती है कि.. ‘तुम कभी याद करो’ !!

अनदेखे धागों में

अनदेखे धागों में, यूं बाँध गया कोई की वो साथ भी नहीं, और हम आज़ाद भी नहीं.

हमारी शायरी पढ़ कर

हमारी शायरी पढ़ कर बस इतना सा बोले वो , कलम छीन लो इनसे .. ये लफ्ज़ दिल चीर देते है ..

मंजिल पर पहुंचकर

मंजिल पर पहुंचकर लिखूंगा मैं इन रास्तों की मुश्किलों का जिक्र, अभी तो बस आगे बढ़ने से ही फुरसत नही..

नींद कल रात भी

नींद कल रात भी आई थी सुहानी हमको ए फ़क़ीरी तेरा एहसान चुकाएँ कैसे

मोहब्बत के रास्ते

मोहब्बत के रास्ते कितने भी मखमली क्युँ न हो… खत्म तन्हाई के खंडहरों में ही होते है…!!

पेड़ को नींद नहीं आती..

पेड़ को नींद नहीं आती…जब तक आख़री चिड़िया घर नहीं आती…

तुम आ जाओ

तुम आ जाओ मेरी कलम की स्याही बनकर मैं तुम्हें अपनी ज़िन्दगी के हर पन्ने में उतार दू|

हजारों महफिलें है

हजारों महफिलें है और लाखों मेले हैं, पर जहां तुम नहीं वहाँ हम अकेले हैं|

तुम्हारी खुशियों के ठिकाने

तुम्हारी खुशियों के ठिकाने बहुत होंगे, मगर हमारी बेचैनियों की वजह बस तुम हो|

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