कभी पलकों पे

कभी पलकों पे आंसू हैं, कभी लब पर शिकायत है.. मगर ऐ जिंदगी फिर भी, मुझे तुझसे मुहब्बत है..

बताओ तो कैसे

बताओ तो कैसे निकलता है जनाज़ा उनका, वो लोग जो अन्दर से मर जाते है…

इश्क़ के क़ाबिल

हम ही उस के इश्क़ के क़ाबिल न थे क्यूँ किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिए |

जो मौत से

जो मौत से ना डरता था, बच्चों से डर गया… एक रात जब खाली हाथ मजदूर घर गया…!

रात भर चलती रहती है

रात भर चलती रहती है उँगलियाँ मोबाइल पर, किताब सीने पे रखकर सोये हुए एक जमाना हो गया|

लिखा जो ख़त हमने

लिखा जो ख़त हमने वफ़ा के पत्ते पर, डाकिया भी मर गया शहर ढूंढते ढूंढते..

दर्द दे गए

दर्द दे गए सितम भी दे गए.. ज़ख़्म के साथ वो मरहम भी दे गए, दो लफ़्ज़ों से कर गए अपना मन हल्का, और हमें कभी न रोने की क़सम दे गए|

मुझे मालूम है..

मुझे मालूम है.. कि ऐसा कभी.. मुमकिन ही नही ! फिर भी हसरत रहती है कि.. ‘तुम कभी याद करो’ !!

हमारी शायरी पढ़ कर

हमारी शायरी पढ़ कर बस इतना सा बोले वो , कलम छीन लो इनसे .. ये लफ्ज़ दिल चीर देते है ..

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