मंजिल पर पहुंचकर

मंजिल पर पहुंचकर लिखूंगा मैं इन रास्तों की मुश्किलों का जिक्र, अभी तो बस आगे बढ़ने से ही फुरसत नही..

वो रोई तो जरूर

वो रोई तो जरूर होगी खाली कागज़ देखकर, ज़िन्दगी कैसी बीत रही है पूछा था उसने ख़त में..

बता किस कोने में

बता किस कोने में, सुखाऊँ तेरी यादें, बरसात बाहर भी है, और भीतर भी है..

वो जो अँधेरो में

वो जो अँधेरो में भी नज़र आए ऐसा साया बनो किसी का तुम

जनाजा देखकर मेरा

जनाजा देखकर मेरा वो बेवफा बोल पड़ी, वही मरा है ना जो मुझ पर मरता था..

एक नाराज़गी सी है

एक नाराज़गी सी है ज़ेहन में ज़रूर, पर मैं ख़फ़ा किसी से नहीं…

बड़ा गजब किरदार है

बड़ा गजब किरदार है मोहब्बत का, अधूरी हो सकती है मगर ख़तम नहीं…

मेरे यार मुझ को

मेरे यार मुझ को लूट के लौटे हैं अभी,,, मेरे दुश्मन तूने इस बार भी देर कर दी…

बैठ जाता हूँ

बैठ जाता हूँ अब खुले आसमान के नीचे तारो की छाँव मे,,, अब शौक नही रहा महफिलो मे रंग जमाने का…

आज उसने अपने हाथ से

आज उसने अपने हाथ से पिलायी है यारो, लगता है आज नशा भी नशे मे है…

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