ना किस्सों से

ना किस्सों से और ना किश्तों से.. ये ज़िन्दगी बनती है कुछ रिश्तों से…

एक पुरानी तस्वीर

एक पुरानी तस्वीर जिसमे तुमने बिंदी लगाई है, मै अक्सर उसे रात में चाँद समझ के देख लेता हूँ|

यूँ चुराकर नही

यूँ चुराकर नही लाया करते दुसरो की शेर-ओ शायरी को कुछ अपने लफ़्ज़ों पर भी तो एतबार रखिये|

पाया भी उन को

पाया भी उन को खो भी दिया चुप भी हो रहे, इक मुख़्तसर सी रात में सदियाँ गुज़र गईं…

कोई होंठों पे

कोई होंठों पे उंगली रख गया था… उसी दिन से मैं लिखकर बोलता हुँ|

हाथ पकड़ कर

हाथ पकड़ कर रोक लेते अगर,तुझपर ज़रा भी ज़ोर होता मेरा, ना रोते हम यूँ तेरे लिये, अगर हमारी ज़िन्दगी में तेरे सिवा कोई ओर होता !

अजीब तरह से

अजीब तरह से गुजर रही हैं जिंदगी…!!! सोचा कुछ, किया कुछ, हुआ कुछ, मिला कुछ..!!!

तुम मेरे लिए रेत क्यों हुए…

तुम मेरे लिए रेत क्यों हुए…पहाड़ क्यों न हुए ? तुम मेरे लिए पहाड़ क्यों हुए…रेत क्यों न हुए ? रेत…पहाड़…मैं…सब वही सिर्फ… “तुम” बदल गए पहली बार भी और फिर…आखिरी बार भी…

ये तो कहिए इस ख़ता की

ये तो कहिए इस ख़ता की क्या सज़ा, ये जो कह दूं के आप पर मरता हूं मैं।।

इश्क़ का रंग

इश्क़ का रंग और भी गुलनार हो जाता है…. जब दो शायरों को एक दुसरे से प्यार हो जाता है|

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