मुझे मालूम है..

मुझे मालूम है.. कि ऐसा कभी.. मुमकिन ही नही ! फिर भी हसरत रहती है कि.. ‘तुम कभी याद करो’ !!

अनदेखे धागों में

अनदेखे धागों में, यूं बाँध गया कोई की वो साथ भी नहीं, और हम आज़ाद भी नहीं.

तलाशी लेकर मेरे हाथों की

तलाशी लेकर मेरे हाथों की क्या पा लोगे तुम बोलो, बस चंद लकीरों में छिपे अधूरे से कुछ किस्से हैं..

मेरे महंगे महंगे ख्वाब..

तू आए और आकर लिपट जाए मुझसे, उफ्फ ये मेरे महंगे महंगे ख्वाब..

तू भी तो आइने की तरह

तू भी तो आइने की तरह बेवफा निकला, जो सामने आया उसी का हो गया..

इंतहा आज इश्क़ की

इंतहा आज इश्क़ की कर दी आपके नाम ज़िन्दगी कर दी था अँधेरा ग़रीब ख़ाने में आपने आ के रौशनी कर दी देने वाले ने उनको हुस्न दिया और अता मुझको आशिक़ी कर दी तुमने ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे बिखरा कर शाम रंगीन और भी कर दी

अरे कितना झूँठ बोलते हो

अरे कितना झूँठ बोलते हो तुम,,, खुश हो और कह रहे हो मोहब्बत भी की है…

मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर

मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर हर तरफ़ हैं, मगर हर शख़्स तन्हा जा रहा है…

वो इश्क ही क्या

वो इश्क ही क्या, जो सलामत छोड़ दे…

अब तो पत्थर भी

अब तो पत्थर भी बचने लगे है मुझसे, कहते है अब तो ठोकर खाना छोड़ दे !

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