दामन की सिलवटो पे बड़ा नाज़ है हमें घर से निकल रहे थे कि बच्चा लिपट गया
Category: वक़्त शायरी
ख़ुद की साजिशो में
ख़ुद की साजिशो में उलझा हुआ ….आज बहुत अकेला सा लग़ा खुद को…
फ़रार हो गई होती
फ़रार हो गई होती कभी की रूह मिरी बस एक जिस्म का एहसान रोक लेता है|
हँसकर कबूल क्या करलीं
हँसकर कबूल क्या करलीं, सजाएँ मैंने……. ज़माने ने दस्तूर ही बना लिया, हर इलज़ाम मुझ पर लगाने का……
तेरा हाथ छूट जाने से
तेरा हाथ छूट जाने से डरता हूँ मैं दिल के टूट जाने से डरता हूँ|
बस इक हवा का फेर है
बस इक हवा का फेर है वो भी #हवा हो जाएगा मैं सोचता रह जाऊँगा मुझ में ये मुझ सा कौन है
कभी-कभी बहुत सताता है
कभी-कभी बहुत सताता है यह सवाल मुझे.. हम मिले ही क्यूं थे जब हमें मिलना ही नहीं था…
इतनी बिखर जाती है
इतनी बिखर जाती है तुम्हारे नाम की खुशबु मेरे लफ़्जों मे..! की लोग पुछने लगते है “इतनी महकती क्युँ है शायरी तुम्हारी..??
देखे हैं बहुत हम ने
देखे हैं बहुत हम ने हंगामे मोहब्बत के आग़ाज़ भी रुस्वाई …..अंजाम भी रुस्वाई….
आशिकी से मिलेगा
आशिकी से मिलेगा ऐ जाहिद, बंदगी से खुदा नहीं मिलता।