बताओ तो कैसे निकलता है

बताओ तो कैसे निकलता है जनाज़ा उनका,,, वो लोग जो अन्दर से मर जाते है…

ये सुनकर मेरी

ये सुनकर मेरी नींदें उड़ गयी,,, कोई मेरा भी सपना देखता है…

इतना काफी है

इतना काफी है के तुझे जी रहे हैं,,,, ज़िन्दगी इससे ज़्यादा मेरे मुंह न लगाकर…!!

किसी को चाहना

किसी को चाहना ऐसा की वो रज़ा हो जाए… जीना जीना ना रहे एक सज़ा हो जाए… ख़ुद को क़त्ल करना भी एक शौक़ लगे… हो ज़ख़्मों में दर्द इतना की दर्द मज़ा हो जाए…

इस मुक़द्दर की

इस मुक़द्दर की सिर्फ़ मुझसे ही अदावत क्यूँ हैं… गर मुहब्बत है तो मुझे तुझसे ही मुहब्बत क्यूँ है…

न जाने क्यूँ

न जाने क्यूँ हमें इस दम तुम्हारी याद आती है, जब आँखों में चमकते हैं सितारे शाम से पहले….

कितने बरसों का सफर

कितने बरसों का सफर यूँ ही ख़ाक हुआ। जब उन्होंने कहा “कहो..कैसे आना हुआ ?”

अजीब होती हैं

अजीब होती हैं मोहब्बत की राहें भी … रास्ता कोई बदलता है .., मंज़िल किसी और की खो जाती है ..

तुम मुझ पर

तुम मुझ पर लगाओ मैं तुम पर लगाता हूँ, ये ज़ख्म मरहम से नही इल्ज़ामों से भर जायेंगे..

आईना आज फिर

आईना आज फिर रिशवत लेता पकडा गया, दिल में दर्द था ओर चेहरा हंसता हुआ पकडा गया|

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