हमेशा नहीं रहते सभी चेहरे नक़ाबों में, हर इक क़िरदार खुलता है, कहानी ख़त्म होने पर…!!
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मयखाने से पूछा
मयखाने से पूछा आज,इतना सन्नाटा क्यों है, . मयखाना भी मुस्कुरा के बोला, लहू का दौर है, साहेब अब शराब कौन पीता है…..!!……..
कह दो अंधेरों
कह दो अंधेरों से कही और घर बना लें, मेरे मुल्क में रौशनी का सैलाब आया है.
झूठी शान के परिंदे
झूठी शान के परिंदे ही ज्यादा फड़फडडाते हैं, बाज की उड़ान में कभी आवाज नहीं होती है !!
ख्वाइश बस इतनी
ख्वाइश बस इतनी सी है कि तुम मेरे लफ़्ज़ों को समझो आरज़ू ये नहीं कि लोग वाह – वाह करें…!!
शीशे में डूब
शीशे में डूब कर पीते रहे उस जाम को कोशिशें की बहुत मगर भुला न पाए एक नाम को…
बचपन में जब
बचपन में जब चाहा हँस लेते थे, जहाँ चाहा रो सकते थे. अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए, अश्कों को तनहाई ..
जरूरी नहीं
आज का ज्ञान अगर कोई दस बजे उठे… तो जरूरी नहीं कि वो… ‘आलसी’ हो………. हो सकता है उसके ‘सपने’ बड़े हों…!!
जरूरतें भी जरूरी हैं
जरूरतें भी जरूरी हैं जीने के लिये …..लेकिन … तुझसे जरूरी तो जिंदगी भी नही……..
आज दिल में एक
आज दिल में एक अजीब सा दर्द है मेरे मौला । ये तेरी दुनिया है! तो यहाँ इंसानियत क्यों मरी है।