तेरी रुसवाइयों से

तेरी रुसवाइयों से डरता हूँ… जब भी तेरे शहर से गुज़रता हूँ…

तू मुझे छोड़ के

तू मुझे छोड़ के चली भी गयी…खैर किस्मत मेरी नसीब मेरे…

वो घडी आई…

आखिर कार वो घडी आई… बार-ऐ-बार हो गए रक़ीब मेरे…

कुछ तेरी अज़मतो का

कुछ तेरी अज़मतो का डर भी था…कुछ अजीब थे ख़यालात मेरे…

हाल ऐ दिल भी

हाल ऐ दिल भी न कह सके तुझसे…तू रही मुद्दतो करीब मेरे…

जरूरी नहीं की

जरूरी नहीं की हर बात पर तुम मेरा कहा मानों, दहलीज पर रख दी है चाहत, आगे तुम जानो….

किस से पूछूँगा

किस से पूछूँगा खबर तेरी… कौन बतलायेगा निशान तेरा…

जाने किन वादियो में

जाने किन वादियो में ठहरा है…गिरत-ऐ-हुस्न कारवाँ तेरा…

ये भी मुझे

ये भी मुझे नही मालूम… किस मोहल्ले में है मकान तेरा..

रहे दो दो फ़रिश्ते

रहे दो दो फ़रिश्ते साथ अब इंसाफ़ क्या होगा किसी ने कुछ लिखा होगा किसी ने कुछ लिखा होगा

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