कांच के कपड़े

कांच के कपड़े पहनकर हंस रही हैं बिजलियां उनको क्या मालूम मिट्टी का दीया बीमार है…

कोई ठुकरा दे

कोई ठुकरा दे तो हँसकर जी लेना.. दोस्तों क्यूँकि मोहब्बत की दुनिया में ज़बरदस्ती नहीं होती..

अच्छा हुआ के

अच्छा हुआ के वक़्त पर ठोकर लगी मुझे छूने चला था चाँद को दरिया में देखकर

मंद मंद मुस्कान

मंद मंद मुस्कान नूरानी चहरे पर, गालो पे जुल्फे बैठी है पहरे पर, आंखो मे तीरी महताब सी रौशनी, काजल बन जाये तलवार तेरे चहरे पर…

हजारो जबावों से

हजारो जबावों से अच्छी है मेरी खामोशी ना जाने कितने सवालों की आबरू रखी ।

ग़लत-फ़हमियों में

ग़लत-फ़हमियों में जवानी गुज़ारी कभी वो न समझे कभी हम न समझे…

झील की चादर पे

झील की चादर पे फैली मौत सी ख़ामोश उदासी देखता हूँ… पानी के इतने पास हूँ पर बिन तेरे ज़िंदगी प्यासी देखता हूँ?

आया था किस काम से

आया था किस काम से, तू सोया चादर तान। सूरत संभाल ए गाफिल, अपना आप पहचान।।

इश्क का धंदा

इश्क का धंदा ही बंद कर दिया साहीब मुनाफे में जेब जले और घाटे में दिल |

गम ऐ बेगुनाही

गम ऐ बेगुनाही के मारे है,, हमे ना छेडो.. ज़बान खुलेगी तो,, लफ़्ज़ों से लहू टपकेगा.

Exit mobile version