संभल के चलने का

संभल के चलने का सारा गुरूर टूट गया एक ऐसी बात कही उसने लड़खड़ाते हुए|

सवाल ये नहीं

सवाल ये नहीं रफ्तार किसकी कितनी है … सवाल ये है सलीक़े से कौन चलता है…!!!

ये जरूरी तो नहीं

ये जरूरी तो नहीं कि उम्र भर प्यार के मेले हों हो सकता है कभी हम तुम अकेले हों…

बाँटने निकला है

बाँटने निकला है वो फूलों के तोहफ़े शहर में, इस ख़बर पर हम ने भी, गुल-दान ख़ाली कर दिया

जा रही हूँ

जा रही हूँ मैं तेरी जिन्दगी से कभी ना फिर लौट के आने को , रोक लो अपने एहसासों को जो लिपट रहे मेरे कदमों से संग आने को !

न जाने इन आंखों को

न जाने इन आंखों को किसकी जुस्तजू है सारी रात देखता रहा घर के दहलीज को !

नजाकत तो देखिये

नजाकत तो देखिये, की सूखे पत्ते ने डाली से कहा, चुपके से अलग करना वरना लोगो का रिश्तों से भरोसा उठ जायेगा !!

हुस्न वाले जब

हुस्न वाले जब तोड़ते हैं दिल किसी का, बड़ी सादगी से कहते है मजबूर थे हम.

मेरा पीछा नहीं छोड़ा

ज़िंदगी ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा अब तक.. उम्र भर सर से न उतरी ये बला कैसी थी..?

शिकवा तकदीर का

शिकवा तकदीर का, ना शिकायत अच्छी, वो जिस हाल में रखे, वही ज़िंदगी अच्छी

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