टूटता है तो टूट जाने दो, आइने से निकल रहा हूँ मैं…
Tag: शर्म शायरी
जुनून हौसला और पागलपन
जुनून हौसला और पागलपन आज भी वही है थोडा सिरीयस हुआ हूँ सुधरा नही हूँ
ज्यादा कुछ नहीं
ज्यादा कुछ नहीं बदलता उम्र बढने के साथ, बस बचपन की जिद समझौतों में बदल जाती है…
गैरों का होता है
गैरों का होता है,वो मेरा नही होता, ये रंग बेवफाई का सुनहरा नही होता… करते न हम मुहब्ब्त,रहते सुकून से, अंधेरो ने आज हमको,घेरा नही होता… जब छोड़ दिया घर को,किस बात से डरना, यूँ टाट के पैबंद पे पहरा नही होता… दुनिया से इस तरह हम,धोखा नही खाते, लोगों के चेहरों पे,ग़र चेहरा नही… Continue reading गैरों का होता है
जिस दम तेरे
जिस दम तेरे कूचे से हम आन निकलते हैं, हर गाम पे दहशत से बे-जान निकलते हैं…
एक मुनासिब सा
एक मुनासिब सा नाम रख दो तुम मेरा रोज जिदंगी पूछती हैं रिश्ता तेरा मेरा…
तीर की तरह
तीर की तरह नुकीली हो गई है, ज़िन्दगी माचिस की तिली हो गई है.!!
ख़ामोशी छुपाती है
ख़ामोशी छुपाती है ऐब और हुनर दोनों , शख्सियत का अंदाज़ा गुफ्तगू से होता है ..!!
हंस के नज़र झुका लेना !!
ग़ज़ब है उसका हंस के नज़र झुका लेना !! सारी शर्तें मेरी कुबूल हों जैसे !!
बहुत खूबसूरत हो
बहुत खूबसूरत हो तुम बिल्कुल किसी धोखे की तरह !!