कुछ इस तरीक़े से

कुछ इस तरीक़े से लिपटी थी फूल से तितली पता चला ना किसे कौन प्यार करता है।

अपने अहसासों को

अपने अहसासों को ख़ुद कुचला है मैंने, क्योंकि बात तेरी हिफाज़त की थी.!

तेरे अल्फाजों से

तेरे अल्फाजों से थे जो …शिकवे… हमने तेरे लबो से लड़कर मिटा दिए|

रात की सीढ़ी पर

रात की सीढ़ी पर चढ़कर… आसमां से कुछ सपने उतारने हैं…

शब्द तो सारे के सारे

शब्द तो सारे के सारे सुरक्षित हैं … बस भावनाओं का वाष्पीकरण हो गया है तुम्हारे खतो से…

एक तुम्हारे होने से

एक तुम्हारे होने से कितनी, ख्वाइशें सजा लीं है मैंने…….!! कि मेरी दस्तक पे, घर का दरवाजा तुम खोलो…!!

लौट आओ ना…

लौट आओ ना… और आकर सिर्फ इतना कह दो… मैं भटक गई थी, थी भी तुम्हारी और हूँ भी तुम्हारी ही…।

मत पूछ इस जिंदगी में

मत पूछ इस जिंदगी में, इन आँखों ने क्या मंजर देखा मैंने हर इंसान को यहाँ, बस खुद से हीं बेखबर देखा।

मेरे मुकद्दर में

मेरे मुकद्दर में तो सिर्फ यादें है तेरी…. . . जिसके नसीब में तू है…उसे ज़िन्दगी मुबारक…!!!

कागज़ों पे लिख कर

कागज़ों पे लिख कर ज़ाया कर दूं, मै वो शख़्स नहीं, मैं वो शायरा हुँ जिसे दिलों पे लिखने का हुनर आता है…।।

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