सुन कर ग़ज़ल

सुन कर ग़ज़ल मेरी, वो अंदाज़ बदल कर बोले, कोई छीनो कलम इससे, ये तो जान ले रहा है..

ज़िंदगी तो किसी

ज़िंदगी तो किसी और की बक्शी हुई अमानत है….. हम तो बस सांसों की रस्म अदा करते हैं….

लत लग गयी है

लत लग गयी है मुझें तो, अब तुम्हारे साथ की.. पर गुनहगार किसको कहूँ, खुद को या तेरी अदाओं को।….

वो खुद ही ना

वो खुद ही ना छुपा शके अपने चेहरे को नकाब मेँ….., बेवजह हमारी आँखो पे इल्जाम लगा दिया….!!!

एक नींद है

एक नींद है जो रात भर नहीं आती और एक नसीब है जो न जाने कब से सो रहा..

हमारे बिन अधूरे

हमारे बिन अधूरे तुम रहोगे कभी था कोई मेरा, तुम खुद कहोगे न होगें हम तो ये आलम भी न होगा मिलेगें बहुत से पर कोई हम-सा न होगा.

तुम जिंदगी का

तुम जिंदगी का वो हिस्सा हो जो कभी भर नहीं सकता

क्या लिखू जिंदगी

क्या लिखू जिंदगी के बारे में..वो लोग ही बिछड़ गए जो जिंदगी हुवा करते थे

बच्चों की हथेली

बस्ता बचपन और कागज़ छीन कर तुमने बच्चों की हथेली बेच दी गाँव में दिखने लगा बाज़ारपन प्यार सी वो गुड़ की भेली बेच दी

जब जब ये चेहरा

जब जब ये चेहरा..! उदास हुआ। झुर्रियों ने पूछा…? मौत के कितने पास हुआ

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