खुद ही पलट लेता हूँ …….. किताबे जिंदगी के पन्ने, वो लोग अब कहाँ……. जो मुझमें, मुझे तलाशते थे|
Tag: शर्म शायरी
क़दम उठे भी
क़दम उठे भी नहीं बज़्म-ए-नाज़ की जानिब,,,,, ख़याल अभी से परेशाँ है देखिए क्या हो…..!!
तेरा यक़ीन हूँ
तेरा यक़ीन हूँ मैं कब से इस गुमान में था, मैं ज़िंदगी के बड़े सख़्त इम्तिहान में था…..!!
क़िस्सा बन सकते थे
ख़्वाब जज़ीरा बन सकते थे, नहीं बने, हम भी क़िस्सा बन सकते थे, नहीं बने….!!
यादों का हिसाब
यादों का हिसाब रख रहा हूँ, सीने में अज़ाब रख रहा हूँ……!!
रोज़ थोड़ा थोड़ा
रोज़ थोड़ा थोड़ा मर रहा हूँ मैं… पर प्यार तुझसे ही कर रहा हूँ मैं
जो कहता है
जो कहता है कि वह बिल्कुल मजे में है वह या तो फकीर है या फिर नशे में है !!
सफ़र में धूप तो
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो, सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो…
जहाँ पे आख़री साँस
जहाँ पे आख़री साँस रहा करती है…. मैंने तुझे वहीं पर छुपा के रखा है|
पिघली हुई हैं
पिघली हुई हैं, गीली चांदनी, कच्ची रात का सपना आए थोड़ी सी जागी, थोड़ी सी सोयी, नींद में कोई अपना आए नींद में हल्की खुशबुएँ सी घुलने लगती हैं…