तनहइयो के आलम की ना बात करो जनाब; नहीं तो फिर बन उठेगा जाम और बदनाम होगी शराब |
Category: Sad Bewafa Shayri
कैसे कह दूं
कैसे कह दूं, कि थक गया हूं मैं….. जाने किस-किस का, हौसला हूं मै|
ये इंतिज़ार सहर का था
ये इंतिज़ार सहर का था या तुम्हारा था, दिया जलाया भी मैंने दिया बुझाया भी मैंने…
मैं मुसाफ़िर हूँ
मैं मुसाफ़िर हूँ ख़तायें भी हुई होंगी मुझसे, तुम तराज़ू में मग़र मेरे पाँव के छाले रखना..
हवा दुखों की
हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह|
बहुत अजीब हैं
बहुत अजीब हैं ये बंदिशें मुहब्बत की, न उसने क़ैद में रखा न हम फ़रार हुए।
क़त्ल तो मेरा
क़त्ल तो मेरा उसकी निगाहों ने ही किया था, पर संविधान ने उन्हें हथियार मानने से इंकार कर दिया !!
आँख की छत पे
आँख की छत पे टहलते रहे काले साए कोई पलकों में उजाले नहीं भरने आया कितनी दीवाली गईं, कितने दशहरे बीते इन मुंडेरों पे कोई दीप ना धरने आया|
जिसको जो कहना
जिसको जो कहना है कहने दो अपना क्या जाता है, ये वक्त-वक्त कि बात है साहब, सबका वक्त आता है..
मज़हब पता चला
मज़हब पता चला, जो मुसाफ़िर की लाश का चुपचाप आधी भीड़ अपने घरों को चली गई|