इतना काफी है के तुझे जी रहे हैं,,,, ज़िन्दगी इससे ज़्यादा मेरे मुंह न लगाकर…!!
Category: गरूर शायरी
इस मुक़द्दर की
इस मुक़द्दर की सिर्फ़ मुझसे ही अदावत क्यूँ हैं… गर मुहब्बत है तो मुझे तुझसे ही मुहब्बत क्यूँ है…
कितने बरसों का सफर
कितने बरसों का सफर यूँ ही ख़ाक हुआ। जब उन्होंने कहा “कहो..कैसे आना हुआ ?”
अजीब होती हैं
अजीब होती हैं मोहब्बत की राहें भी … रास्ता कोई बदलता है .., मंज़िल किसी और की खो जाती है ..
तुम मुझ पर
तुम मुझ पर लगाओ मैं तुम पर लगाता हूँ, ये ज़ख्म मरहम से नही इल्ज़ामों से भर जायेंगे..
आईना आज फिर
आईना आज फिर रिशवत लेता पकडा गया, दिल में दर्द था ओर चेहरा हंसता हुआ पकडा गया|
बहुत गुरुर है
बहुत गुरुर है दरिया को अपने होने पर, जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड जाये।
वो शख़्स जो
वो शख़्स जो आज मुहब्बत के नाम से बौखला गया…. किसी जमाने में एक मशहूर आशिक़ हुआ करता था….
मेरी गली मेरे घर में है
जो बात मेरे गाँव मेरी गली मेरे घर में है। उसके जैसा कुछ भी कहाँ तेरे शहर में है।
यूँ तो तेरी
यूँ तो तेरी सारी यादें सम्हाली है मैंने जैसे ईदी हो मेरे बचपन की…….