ये क्यों कहे

ये क्यों कहे दिन आजकल अपने खराब हैं, काटों से घिर गये हैं, समझ लो गुलाब हैं।

कर रहा हूँ

कर रहा हूँ बर्दाश्त हर दर्द इसी आस के साथ…. की मंजिल भी मिलेगी … सब आज़माइशों के बाद…

हज़ारों मिठाइयाँ चखी

हज़ारों मिठाइयाँ चखी हैं मैंने लेकिन ख़ुशी के आंसू से मीठा कुछ भी नहीं..

मै सपने नही

मै सपने नही देखता . . . क्योकी अक्सर मै जो हकीकत मे करता हु . . . वो लोगो के सपने हुआ करते है . . .

अजीब सी बस्ती

अजीब सी बस्ती में ठिकाना है मेरा जहाँ लोग मिलते कम, झांकते ज़्यादा है…

हमारे इश्क की

हमारे इश्क की तो बस इतनी सी कहानी हैं: तुम बिछड गए.. हम बिख़र गए.. तुम मिले नहीं.. और हम किसी और के हुए नही

जिंदगी तेरी आँच

ख्वाब शीशे के थे पिघल गये, जिंदगी तेरी आँच ज्यादा थी……

मेरा भी वक्त आएगा

छत , इतवार , परिंदे , पेड , किताब , कलम , शाम … मैंने कहा था ना मेरा भी वक्त आएगा .!!

खुल सकती हैं

खुल सकती हैं रुमाल की गांठें बस ज़रा से जतन से मगर, लोग कैंचियां चला कर, सारा फ़साना बदल देते हैं.. !!!

अपना क्या है

जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ अपना क्या है सारे शहर का इक जैसा नुक़सान हुआ

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