थे तो बहुत मेरे भी

थे तो बहुत मेरे भी इस दुनियां में कहने को अपने, पर जब से हुआ है इश्क हम लावारिस हो गए !!

मुझे कुबूल नहीं

मुझे कुबूल नहीं खुद ही दूसरा चेहरा, ख़ुशी तो मुझ को भी अक्सर तलाश करती है…

कहाँ उलझा पड़ा है

कहाँ उलझा पड़ा है तू उन छोटी छोटी बातों में चल कोई बड़ी बात से हम अब ये रिश्ता ख़त्म करते हैं

एक चादर साँझ ने

एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी, यह अँधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है! निर्वसन मैदान में लेटी हुई है जो नदी, पत्थरों से ओट में जा-जा के बतियाती तो है!!!

हुस्न वाले जब तोड़ते हैं

हुस्न वाले जब तोड़ते हैं दिल किसी का, बड़ी सादगी से कहते है मजबूर थे हम.

तुझसे नाराज़ होकर

तुझसे नाराज़ होकर कहाँ जाएँगे… रोएँगे तड़पेंगे फिर लौट आएँगे|

इश्क़ की चोट का

इश्क़ की चोट का कुछ दिल पे असर हो तो सही, दर्द कम हो या ज़ियादा हो मगर हो तो सही…

ये सुलगते जज्बात

ये सुलगते जज्बात दे रहे है गवाही क्यों तुम भी हो न इस इश्क़ के भवर में|

और कितना परख़ोगे

और कितना परख़ोगे तुम मुझे? क्या इतना काफ़ी नहीं कि मैनें तुम्हें चुना है।

तुम इतने कठिन क्यूँ हो

तुम इतने कठिन क्यूँ हो की मैं तुम्हे समझ नहीं पाता, थोड़े से सरल हो जाओ सिर्फ मेरे लिए !!

Exit mobile version