कितने बरसों का सफर

कितने बरसों का सफर यूँ ही ख़ाक हुआ। जब उन्होंने कहा “कहो..कैसे आना हुआ ?”

अजीब होती हैं

अजीब होती हैं मोहब्बत की राहें भी … रास्ता कोई बदलता है .., मंज़िल किसी और की खो जाती है ..

तुम मुझ पर

तुम मुझ पर लगाओ मैं तुम पर लगाता हूँ, ये ज़ख्म मरहम से नही इल्ज़ामों से भर जायेंगे..

आईना आज फिर

आईना आज फिर रिशवत लेता पकडा गया, दिल में दर्द था ओर चेहरा हंसता हुआ पकडा गया|

एकांत को पिघला कर

एकांत को पिघला कर उसमें व्यस्त रहता हूँ, इन्सान हूँ मुरझा कर भी मस्त रहता हूँ

ख्वाबों में ही

ख्वाबों में ही सही तुम मेरे करीब हो हाँ बेहद करीब |

खुद को समझे वो

खुद को समझे वो लाख मुक्कमल शायद… मुझको लगता है अधूरी वो मेरे बिना|

मैं फलक ठहरा

मैं फलक ठहरा वो दरिया जमीन पर बिखरी… रुख़सती तो दूर हुई मिलन ही कहाँ मुकम्मल

तुम ही रख लो

तुम ही रख लो अपना बना कर.. औरों ने तो छोड़ दिया तुम्हारा समझकर|

आँखों को इंतज़ार की

आँखों को इंतज़ार की भट्टी पे रख दिया.. मैंने दिये को आँधी की मर्ज़ी पे रख दिया|

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