बहुत गुरुर है दरिया को अपने होने पर, जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड जाये।
Category: दर्द शायरी
इश्क़ की अदालत
इश्क़ की अदालत का ये फ़ैसला अनोखा हैं… सज़ा ए उम्र उसी को जिसने खाया धोखा है…
तुम में और आइने में
तुम में और आइने में कोई फर्क नहीं जो सामने आया तुम उसी के हो गए !
हर घड़ी ख़ुद से
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा किससे पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ बरसों से हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा मुद्दतें बीत गईं इक ख़्वाब सुहाना… Continue reading हर घड़ी ख़ुद से
हम मेहमान नहीं
हम मेहमान नहीं बल्कि रौनक-ऐ-महफ़िल है, मुद्दतों याद रखोगे की जिंदगी में आया था कोई!!
हार जाउँगा मुकदमा
हार जाउँगा मुकदमा उस अदालत में, ये मुझे यकीन था.. जहाँ वक्त बन बैठा जज और नसीब मेरा वकील था…
तुम मेरे हो
फ़क्र ये के तुम मेरे हो, फ़िक्र ये पता नही कब तक…
सोचता हूँ धोखे से
सोचता हूँ धोखे से ज़हर दे दूँ.. सभी ख्वाहिशों को दावत पे बुला कर..
ग़म बिक रहे थे
ग़म बिक रहे थे मेले में ख़ुशियों के नाम पर मायूस हो के लौटे हैं हर इक दुकाँ से हम..
डूब कर सूरज ने
डूब कर सूरज ने, मुझे और भी तन्हा कर दिया… . साया भी अलग हो गया,मेरे अपनो की तरह…