किताबों की तरह

किताबों की तरह हैं हम भी…. अल्फ़ाज़ से भरपूर, मगर ख़ामोश…

नज़र आना जरुरी है।

उसूलों पर अगर आ जाये, तो टकराना जरुरी है! जिन्दा हो तो जिन्दा नज़र आना जरुरी है।

जब से पड़ा है

जब से पड़ा है तेरी निगाहों से वास्ता, नींद नहीं आती मुझे सितारों से पूँछ लो!

फासलों से अगर..

फासलों से अगर.. मुस्कुराहट लौट आये तुम्हारी… तो तुम्हे हक़ है.. कि तुम… दूरियां बना लो मुझसे….

नाराज़गी तुमसे नहीं

मेरी नाराज़गी तुमसे नहीं, तुम्हारे वक्त से है|

सूखने लगी है….

सूखने लगी है….स्याही शायद,ज़ख़्मों की दवात में… वरना वो भी दिन थे,दर्द रिसता था धीरे-धीरे !

और फिर शाम हुई…

और फिर शाम हुई… रंग उड़े… जाम बने और फिर ज़िक्र छिड़ा… थोड़े से ग़मनाक हुए

दुसरो की छांव में

दुसरो की छांव में खड़े रहकर, हम अपनी परछाई खो देते है, खुद की परछाई के लिये तो, हमे धूप में खड़ा होना पड़ता है..

इकतरफ़ा इश्क़

इकतरफ़ा इश्क़ का अपना ही है मज़ा अपना ही गुनाह है अपनी ही सज़ा

उसका चेहरा जो

उसका चेहरा जो मेरी आँखों में आबाद हो गया मैने उसे इतना पढ़ा कि मुझे याद हो गया .

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