जौर तो ऐ ‘जोश’ आखिर जौर था, लुत्फ भी उनका सितम ढाता रहा।
Category: दर्द शायरी
लिखूं ये मुमकिन नहीं
रोज़ रोज़ रात को लिखूं ये मुमकिन नहीं…. कहकर… मेरी कलम सो गयी है रज़ाई में।
सभी का खून
सभी का खून है शामिल यहा की मिट्टी में किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोडी है
भारत
तूने कहा,सुना हमने अब मन टटोलकर सुन ले तू, सुन ओ आमीर खान,अब कान खोलकर सुन ले तू,” तुमको शायद इस हरकत पे शरम नहीं आने की, तुमने हिम्मत कैसे की जोखिम में हमें बताने की शस्य श्यामला इस धरती के जैसा जग में और नहीं भारत माता की गोदी से प्यारा कोई ठौर नहीं… Continue reading भारत
घर नहीं मिला
दर दर भटक रही थी पर दर नहीं मिला, उस माँ के चार बेटे हैं पर रहने को घर नहीं मिला।
एक उसूल पर
एक उसूल पर गुजारी है जिंदगी मैंनें, जिसको अपना माना उसे कभी परखा नही..
गुजर रही है
गुजर रही है जिन्दगी जिक्र हे खुदा से गाफिल, ए दिल ए नादां सम्भल जा ज़रा के मौत का कोई वक्त नही.
अगर ख़ुशी मिलती
अगर ख़ुशी मिलती है उसे हम से जुदा होकर; तो दुआ है ख़ुदा से कि उसे कभी हम ना मिलें…!!
इतना शौक मत
इतना शौक मत रखो इन ” इश्क ” की गलियों में जाने का.. क़सम से रास्ता जाने का है आने का नही..!!
खुली हवाओं की
खुली हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती है ! कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है !! जो जुर्म करते हैं, इतने बुरे नहीं होते ! सज़ा न दे के अदालत बिगाड़ देती है !!